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इल्म जिन कुलूब में जगह बनाता है, जिन बस्तियों को मरकज़ के तौर पर अपनाता है और उस की तालीम व ताल्लुम के लिए जिन अफराद का इन्तिख़ाब करता है, यक़ीनी तौर पर वह कुलूब, बिस्तयां और वह अफरात अल्लाह की तरफ से मुन्तख़ब किये जाते हैं, इस लिए कि इल्म अल्ला का नूर है और अल्लाह का नूर वहीं समा सकता है और जगह बना सकता है जहां अल्लाह तआला ने खुद उस की गुंजाइश पैदा फरमायी हो, और एक एैसा माहोल पहले से तय्यार कर दिया हो जहां इल्म की जड़ें पकड़ सकें और सुफ्फा से चली हुई वह अज़ीमुश्शान और बाबरकत रिवायत व तारीख़ जो ज़ाते नबवी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से मनसूब है वह दुनिया के जिस गोशा और जिस हिस्से में पहुंचे उस का इमतियाज़ हर सूरत में बाक़ी और तारीफ के क़ाबिल है।
कांधला एक एैसी बस्ती है जो रुहानी बुजुर्गाें और उलमा की पैदाइश की जगह भी है और क़याम की जगह भी। यहां मुख़तलिफ दौर में वह मिसाली इंसान पैदा हुए जिन की बड़ी बड़ी खि़दमात और नुमाया कारनामों से इस बस्ती की पैशानी पर नूर की किरनें और चेहरे पर पाकीज़गी की चमक है। जिस बस्ती में तबलीग़ के बानी मौलाना इलयास साहब रह0, हज़रत मौलाना मोहम्मद यूसुफ साहब रह0, हज़रत मौलाना शैख़ ज़करिया साहब रह0, और हज़रत मौलाना मुज़फ्फर हुसैन साहब जेसे बड़े बड़े उलमा गुज़रे हैं। वह बस्ती रसूमात ओर बिदआत का गढ़ बनी हुयी थी, हर तरफ अंधेरा था, और ख़ामोशियां एैसी कि गुमराहियां पूरी ताक़त के साथ दनदनानी फिर रही थीं, सन्नाटे एैसे जहां इस्लाह व हिदायत की तालीम व तदरीस की कोई आवाज़ सुनाई न देती थी, एैसी पुर हौल ख़ामोश जिस के सोचने से दिल होलने लगे, इस दुनिया में एक खुदा का बन्दा ज़ाहिर हुआ और अल्लाह ने उस के हाथ में दीने हक़ की वह शमा दी जो हमारे बजुर्गों का असल मक़सद है।
यह शख़सियत ख़दिमे क़ौम व मिल्लत, वलीय कामिल हज़रत अलहाज मौलाना सय्यद ज़ैनुल आबिदीन साहब रज0 की थी। जिन के सीने में अल्लाह ने क़ौम की खि़दमत का जज़बा और मिल्लत का दर्द कूट कूट कर भर दिया था, वह परेशान और बेचेन और उन की रुह उन बिदआत और खामोशियों के खि़लाफ लड़ने के लिए आमादा और तय्यार। इसी मिसाली जज़बे का इज़हार इस तरह हुआ कि 19 ज़ीक़ादा 1383 हि0 में उस वक़्त की बाकमाल शख़सियत शैखु़त्तफसीर हज़रत मौलाना फख़रुल हसन साहब रह0 सदर मुदर्रिस दारुल उलूम देवबन्द के मुबारक हाथों से ”जामिया अरबिया क़ासिमुल उलूम“ का संगे बुनियाद रखा गया। यह वही क़ासिमुल उलूम है जिस ने शमअे दीन की हिफाज़त की और सिर्फ इस क़सबे तक इस का फैज़ान जारी नहीं हुआ बल्कि चारों तरफ में ही नहीं फैला, बल्कि एक सूबे से दूसरे सूबे तक और हिन्दुस्तान की हदूद से निकल कर बेरुन मुमालिक भी इस चश्मे का फैज़ का भरपूर असर क़ायम हुआ। इस तरह हज़रत मोहसिने मिल्लत का फैज़ जारी है और क़यामत तक इंशाअल्लाह जारी रहेगा।
मदारिसे इस्लामिया मुसलमानों की दीनी तालीम के मराकिज़ ही नहीं बल्कि उन के इक़दार, तशख़्खुसात, शआइर, तालीमात और रिवायतों के मुहाफिज़ हैं यह जाहां जाहां भी हैं अपनी वुसत के मुताबिक़ अपने कामों को अंजाम दे रहे हैं। इन मदारिस की इफादयत और अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता। इस लिए कि यह उस सिलसिले की कड़ियां हैं और उस आफताबे इल्म की झलकियां हैं जिस की शुरुआत नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बाकायदा फरमयी थी। तसव्वुर की आंख से देखिए माज़ी और हाल के आएने में, जायज़ा लीजिए और मुस्तक़बिल के अंदेशों और ख़तरात को देखने की कोशिश कीजिए तो आप को उस हक़ीक़त का अंदाज़ा होगा कि अल्लाह तआला ने इन मदारिस को एक ख़ास मक़सद और मिशन के तहत मुन्तख़ब फरमा लिया है। यह दीन की वह छोटी बड़ी छावनियां और क़िले हैं जहां किताब व सुन्नत की रोशनी फैली हुयी है। ”जामिया अरबिया क़ासिमुल उलूम“ ने पहले रोज़ से ही जिन मक़ासिद के तहत अपने सफर की शरुआत की थी वह शुरुआत उस की नज़र में है और वक़्त के तक़ाज़े और अहवाल से भी वह नावाक़िफ नहीं है। क़दम क़दम बढ़ते हुए इन ख़तरात और होलनाकियों को देख रहा और मेहसूस कर रहा है जो माज़ी में भी थीं और हाल में भी ज़्यादा शिद्दत के साथ उभर कर सामने आयी हैं। हज़रत मौलाना सय्यद ज़ैनुल आबिदीन रह0 (अलमारुफ मौलाना स0 ज़ैनुद्दीन) ख़लीफाए अजल हज़रत अलहाज मौलाना मोहम्मद अहमद साहब जाफर इलाहाबादी ने इन हालात का अंदाज़ा बखूबी लगाया था और अपनी तमाम ताक़तें जामिया के क़याम पर लगा दीं और तमाम कोशिशें और फिक्र व नज़र की तमाम सलाहियतें इस तरह काम में लाए कि आज यह इदारा मोहसिने मिल्लत हज़रत मौलाना सय्यद ज़ैनुल आबिदीन रह0 की इल्मी यादगार के तौर पर ही क़ायम नहीं है बल्कि अपनी खि़दमाते जलीला की वजह से उस का नाम ऐतबार और सनद का दर्जा हासिल कर चुका है। अल्लाह पर भरोसा जामिया के लिए जिस जगह का इन्तिख़ाब हुआ ज़ाहिर में वह जगह कूड़े करकट का एक एैसा ढेर था जिस पर किसी मरकज़े इल्म के क़याम का ख़याल भी किसी दिल में नहीं आ सकता था। यह एक तालाब था जिसे पाट कर मदरसे की बुनियाद रखी गयी। इस से पहले एक लम्बे वक़्त तक यानि 18 साल यह मदरसा मस्जिद ही में खिदमत करता रहा और मुख़तलिफ रास्तों से गुज़रते हुए 18 साल बाद एक नयी जगह पर क़ायम हुआ और आज बारगाहे इलाही में हज़ार सजदाए शुक्र बजा लाने के बावजूद भी रहमते इलाही और इनआमे रब्बनी का हक़ अदा नहीं होता।
मुहिब्बे उलमा जनाब मुस्तुफा बेग साहब मरहूम, अल्लाह उन की क़ब्र को नूर से भर दे कि जिन्हों ने ”जामिया अरबिया क़ासिमुल उलूम“ के लिए और हज़रत मोहसिने मिल्लत के घर कर लिए एक ज़ीन का हिस्सा इनायत फरमाया। पहले यक मकतब था फिर मदरसा बना और आज एक जामिया की सूरत में हमारे सामने है। जामिया को हम सिर्फ एक दीनी तालीम गाह कहें तो यह हक़ीक़त न होगी। इस लिए कि यह एक तहरीक है जिस ने इस्लाहे मुआशरे की कोशिश की, शिरकत व बिदअत और रस्म व रिवाज को जड़ से मिटाया, इस पस मंज़र में एक तालीमी, इस्लाही तहरीक है जिस का सफर हालात की सख़्ती के बावजूद तेज़ रफ्तारी के साथ जारी है। इस के वजूद से हर तरफ रोशनियां हैं। हर तरफ इल्म व अमल के पैकर तय्यार हो रहे हैं। दावत व तबलीग़ के मरकज़ वजूद में आ रहे हैं। इख़लास व लिल्लाहियत के ताज महल तय्यार हो रहे हैं। इस तरह कुफर व शिर्क के अंधेरों को शिकस्त हुयी, जिहालत और नावाक़फियत के पर्दे चाक हुए और तालीम का एक एैसा माहोल बन गया कि घर घर में हाफिज़ मौजूद है। अलहमदुल्लिाह।
सर ज़मीने कांधला व सर ज़मीन है जहां बड़े बड़े उलमा पैदा हुए हैं, और कांधले का फैज़ आज पूरी दुनिया में जारी है। इन्ही उलमा किराम में तबलीग़ी जमाअत के बानी हज़रत मौलाना इलया साहब रह0, हज़रत मौलाना शेख़ ज़करिया साह रह0 (मुसन्न्सिफ फज़ाइले आमाल), हज़रत मौलाना मुज़फ्फर हुसैन साहब रह0 वग़ैरा पैदा हुए। लेकिन यहां रुसूम और बिदआत के बादल पूरे इलाक़े पर छाए हुए थे, किसी तरफ भी कोई एक चिराग़ की रोशनी नहीं आ रही थी, मायूसियों और खामोशियों के इस साय में गुमराहियों वहशियों के इस गहरे अंधेरे में अगर कोई दीन की शमा ले कर यहां दाखि़ल हुआ तो वह एक अललिमे बेमिसाल जज़बा अता किया था। चुनांचे इस पुर आशोब माहोल में 19 ज़ीक़ादा 1383 हि0 में उस वक़्त के अस्हाबे फज़ल व कमाल शैख़ुत्तफसीर हज़रत मौलाना फख़रुल हसन साहब रह0 सदरुल मुदर्रिसीन दारुल उलूम देवबन्द के मुबारक हाथों से ”जामिया अरबिया क़ासिमुल उलूम“ का संगे बुनियाद अमल में आया। जिस में शैखुल इस्लाम हज़रत मौलाना सय्यद हुसैन अहमद मदनी रह0 सदर मुदर्रिस व शेखुल हदीस दारुल उलूम देवबन्द और मुफक्किरे क़ौम व मिल्लत हज़रत मौलाना अब्दुल जलील साहब रह0 के ईमा व मशवरे से क़ासिमुल उलूम का वजूद अमल में आया। जिन्हों ने उम्मते मेस्लिमा के घरों में दीन की शमा रोशन और चारों तरफ, और सूबे और पूरे हिन्दुस्तान के अलावा आज बैरुने मुल्क भी हज़रत मोहसिने मिल्लत का फैज़ जारी है। यह हक़ीक़त यही मदारिसे इस्लामिया की बदोलत ही मुसलमानों में मज़हबी इक़दार ज़िदा हैं, इस्लाम ज़िन्दा दीन बाक़ी है। वरना कब की बिसात उलट चुकी होती जितनी जमाअतें और तंज़ीम दीनी,, मिल्ली जिद्दो जहद करती नज़र आ रही हैं। इन सब में रुहे रवां दौराने सर्फ इन मदारिस के दम से हैं। मदरसा अस में उस जगह का नाम है जो आयते शरीफा मज़हर हो तालीम किताब व सुन्नत के साथ तामील सुन्नत में जो तबई व ग़फलत इस का इज़ाला किया जाए यही तज़किया है हज़रत सय्यदुल अव्वलीन वलआखि़रीन ख़ातिमुल अंमिबया वलमुरसलीन सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के उलूम से आरास्तगी और आप की सुन्नतों का अहया उस की तरवीज व इशअत मुरकिरात व नवाहिश की तफसीर व तरदीद यानि अम्र बिलमारुफ व नहि अनिलमुनकर जो उलमा का बतौरे ख़ास अज़ीम तरीन फरीज़ा है, इस की अदायगी का एहतमाम करना और फिर पूरा ऐहसास पैदा करना दीनी मदारिस का मक़सूदने आज़म है।
दौरे हाज़िर के असरी तक़ाज़े दीन व ईमान के तहफ्फुज़, दीनी शआइर की बक़ा, इल्म व अमल की इशाअत तरवीज नीज़ कौ़मी मुल्की हमियत को बेदार करना, कुरआन व हदीस और फिक़ा की तालीम की इशाअत व तबलीग़ के पेशे नज़र ”जामिया अरबिया क़ासिमुल उलूम“ क़स्बा कांधले का क़याम मोहसिने मिल्लत हज़रत अलहाज मौलाना सय्यद ज़ैनुल आबिदीन साहब क़ासमी रह0 (ख़लीफा हज़रत अलहाज मौलाना मोहम्मद अहमद साहब जाफरी इलाहाबादी) की जिद्दो जहद और उन की कोशिश की बिना पर बतारीख़ 19 ज़ीक़ादा 1383 हि0 को वजूद में आया जो आज तक बिहमदिल्लाह अपने मिशन पर गामज़न है और अल्लाह के भरोसे जामिया की बुनियाद एक गहरे तालाब को मिट्टी से भराव करके रखी गयी थी। यह एक एैसी जगह थी जहां थी शहर की गन्दगी कूड़ा करकट और निजासत डाली जाती थी एैसी जगह को हज़रते वाला ने मेहनत व मशक़्क़त उठा कर साफ कराया, और खुद सर पर मिट्टी की टोकरियां उठा कर उस तालाब को भरा जहां अलहमदुल्लिाह क़ालल्लाह व क़ालर्रसूल का दर्स होता है, आज हाज ये हक् कि इस की तालीमी नेक नामी और तरबियती शोहरत सुन सुन कर दूर दराज़ मदारिस कशमीर, बिहार, बंगाल, आसाम, हरयाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के मुख़तफि अज़ला के तलबा जो मेहमाने रसूल कहलाते हैं, सफर करके आते हैं उलूमे नबुव्वत से फैज़ियाब होते हैं।
कांधला पूरो आलम में मशहूर है यह वह बस्ती है जहां से तबलीग़ी जमाअत का काम शुरु हुआ उस के बावजूद उस वक़्त भी इस इलाक़े की हालत जिहालत की मानिन्द थी। कांधला जैसे मरकज़ मक़ाम में भी कोई बाज़ाबता इदारा नहीं था, जिमिया अरबिया की बेसरो सामानी का यह आलम था कि इस की इमारत ही नहीं थी बल्कि इस का आग़ाज़ एक छोटी सी मस्जिद से हुआ और अमला खुद मोहसिने मिल्लत हज़रत अलहाज मौलाना सय्यद ज़ैनुल आबिदीन साहब क़ासमी रह0 और चन्द तलबा थे। यह मदरसा मस्जिद ही में नशेब व फराज़ से गुज़रता रहा बिलआखि़र क़स्बे के दर्दमन्द ज़िम्मेदारों की लगन और अल्लाह के फज़ल से मोहसिने मिल्लत की कोह इस्तिक़ामत से मकतब से मदरसा, मदरसे से जामिया बन गया, तालीमी, दावती, इस्लाही तहरीक का कोई गोशा एैसा नहीं है जिस में मोहसिने मिल्लत ने वह नुकूश छोड़े हैं जो क़यामत मुसलमान याद रखेंगे। क़ासिमुल उलूम सिर्फ एक दीनी तालीम गाह ही नहीं बल्कि दर हक़ीक़त एक माअस्स्रि और फआल तहरीक है। इस तहरीक ने मुसलमानों के अक़ाइद व आमाल के ख़सो ख़ाशाक को जुदा कर के उन को साफ और बेमेल इस्लाम से रुशनास कराया। शिर्क व बिदअत और रस्म व रिवाज से उन्हें निजात दी, क़ौमी वक़ार को बुलन्द किया और इस्लाही मुआशरे के लिए जगह जगह प्रोग्राम कराए जिस के सालह असरात व समरात सूरज की तरह ज़ाहिर हैं। अलग़र्ज़ क़ासिमुल उलूम एक तालीमी इस्लाही तहरीक है और मुस्तक़िल तारीख़ है, मुनफरिद मक़स के लिए मिल्लत की मंज़िले मकसूद है। जो अलहमदुल्लिाह अपनी राह पर गामज़न है। जिसे क़दम क़दम मुश्किलात और हालात के नामुसाइदात के बावजूद बर्क़ रफतारी से तकक़्की की मंज़िलें तै की हैैं, जिस के ताली व इस्लही फयूजे़ असरात व बरकात पूरे मुल्क व बैरुने मुल्क में जारी हैं। फलहमदुलिल्लाह।
यह जामिया कांधले की सर ज़मीन का सब से पहला अज़ीमुश्शान इदारा है इस से पहले बाज़ाबता कांधले में कोई मदरसा न था, यह जामिया अलहमदुलिल्लाह रोज़े अव्वल ही से अपनी वुसअत और बिसअत से कहीं ज़्यादा अपने तालीम मिशन में नुमायां खि़दमात अंजाम देता आ रहा है और कुफर व ज़लालत के माहोल में जब उस ने ज़िया पाशियां शरु कीं और अपनी नूरानी किरनों से हर तरफ मुनव्वर किया तो इल्म व अमल के पैकरे हिदायत दावत व तबलीग़ के इस दीनी मरकज़ में इख़लास व लिल्लाहियत के इस ताज महम में इल्म वे अमल के अपने नमूने पेश किये कि जिस ने कुफर व शिर्क के अंधेरों को रोशनी बख़शी और जहां आलिम, हाफिज़ का तसव्वुर भी नहीं होता था वहां तालीम का एैसा माहोल पैदा हुआ कि घर घर आलिम व हाफिज़ का सिलसिला शुरु हुआ। कुरआन व दीनी तालीम से पूरा माहोल रुह अफज़ा बन गया। अल्लाहुम्मा ज़िद फज़िद।
अज़ मुफक्किरे इस्लाम हज़रत मौलाना सय्यद अबुलहसन अली नदवी रह0
मदरसा सब से बड़ी कारगाह है, जहां आदम गिरी और मदरदुम साज़ी का काम होता है। जहां दीन की दाई, इस्लाम के सिपाही तय्यार होते हैं। मदरसा इस्लाम का बजली घर (यानि पावर हाऊस है) जहां से इस्लाम आबादी बल्कि इंसानी आबादी में बिजली तक़सीम होती है। मदरसा वह कारख़ाना है जहां क़ल्ब व निगाह और ज़हन व दिमाग़ ढलते हैं, मदरसा व मक़ाम है जहां से पूरी कायनात का ऐहतसाब होता है और पूरी इंसानी ज़िन्दगी की निगरानी की जाती है। जहां का फरमान दरे आलम पर नाफिज़ है, आलिम का फरमान उस पर नाफिज़ नहीं, मदरसे का ताल्लुक़ किसी तक़वीम, किसी तमद्दुन, किसी अहद, किसी कलचर ज़बान व अदब से नहीं उस की क़दामत का शुबाह और उस के ज़वाल का ख़तरा हो उस का ताल्लुक़ बराहे रास्त मोहम्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से है। जहां आलमगर भी है और ज़िन्दा जावेद भी उस का ताल्लुक़ उस इंसानियत से है जो हर दम जवां है, उस ज़िन्दगी से हे जो हमा वक़्त रवां दवां है। मदरसे की हक़ीक़त क़दीम व जदीद की बहसों से बालातर है वह तो एैसी जगह है जहां नबुव्वते मुहम्मदी की हिदायत और ज़िन्दगी का नूमना और हरकत दोनो पाय जाते हैं। अल्लाहुम्मा ज़िद फज़िद
हज़रते अक़दस मौलाना युसुफ साहब कांधलवी मरकज़ निज़ामुद्दीन देहली
उम्मत किसी एक क़ौम और इलाक़े के रहने वालों का नाम नहीं है। बल्कि सैंकड़ों, हज़ारों क़ोमों से जुड़ कर उम्मत बनती है जो कोयी किसी एक क़ौम या एक इलाक़ा अपना समझता है और दूसरों को ग़ैर समझता है वह उम्मत ज़िबह करता है और उस को टुकड़े टुकड़े करता है और हजूरे अकरम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा रिज़0 की मेहनतों पर पानी फेरता है, उम्मत को टुकड़े टुकड़े करके पहले हम ने खुद ज़िबह किया और यहूद व नसारा ने तो उस के बाद कटी कटायी उम्मत को काटा और अगर मुसलमान अब भी उम्मत बन जाय तो दुनिया की सारी ताक़त मिल कर भी उन का बाल बांका नहीं कर सकेंगी। ऐटम बम और राकेट उस को ख़त्म नहीं कर सकेंगे। लेकिन अगर वह क़ौमी और इलाक़ायी मुसीबतों की वजह से आपस में उम्मत के टुकड़े करते रहे तो खुदा की क़सम तुम्हारे हथियार और तुम्हारी फौजें तुम को न हीं बचा सकतीं अब मुसलमान उम्मत होने की सिफत खो चुके हैं। जब तक यह उम्मत ही हुयी थी चन्द लाख सारी दुनिया पर हावी थी उम्मत इस तरह बनी हुयी थी कि उन का कोई आदमी अपने ख़ानदात, अपनी बिरादरी, अपनी पार्टी, अपनी क़ौम, अपने वतन, अपनी ज़बान का हामी न था, माल व जायदाद, अपनी बीवी बच्चों की तरफ देखने वाला भी न था बल्कि आदमी सिर्फ यह देखता था कि अल्लाह तआला और उस के रसूल ने क्या फरमाया है, उम्मत जब ही बनती है हब अल्लाह और रसूले अकरम सलल्लाहू अलैहि वसल्लम के मुक़ाबले सारे रिश्ते, सारे ताल्लुक़ात मुनक़ता हो जाएं, जब मुसलमान एक एक उम्मत थी तो एक मुसलमान के कहीं क़त्ल हो जाने पर सारी उम्मत हिल जाती थी अब हज़ारों लखों के सर कटते हैं मगर कनों पर जूं नहीं रंगती।
जामिया आइन्दा चन्द सालों में मन्दराजाज़ेल दरजात की बाज़ाबता शक्ल देकर उन की तकमील देना चाहता है आप से खुसूसी तवज्जह व दुआ की ज़रुरत है।
1. मौलाना सय्यद ज़ेनुल आबिदीन मेमोरियल एंगलो अरबिक स्कूल
2. दरजा तजवीद व क़िराअत को बाज़ाबता शक्ल देकर उस को मुस्तक़िल शोबे में तबदील करना।
3. दरजाते अरबिया में मिश्कात शरीफ तक तकमील करना।
4. सनत व हिरफत की तालीम व तरबियत का शोबा क़ायम करना।
5. मोहसिने मिल्लत लाएब्रेरी का क़याम
इस लाएब्रेरी में मन्दराजाज़ेल शोबे होंगे।
1. कुतुब ख़ाना लाएब्रेरी 2. दारुज़्जुयूफ 3. शोबाए अरबी की तालीम गाह 4. शोबाए हिफज़ की तालीम गाह 5. दारुल असातिज़ा 6. मौलाना सय्यद ज़ेनुल आबिदीन मेमोरियल एंगलो अरबिक स्कूल की तामीर 7. जामिया आयशा लिलबनात की मुकम्मल तामीर 8. पानी की टंकी।
यह चन्द ऐसे मनसूबे हैं जो फौरी तकमील और बड़े मसारिफ के हैं। उम्मीद है कि मुआविनीनी और हमदर्द हज़रात इन की अहमियत के पेशे नज़र तवज्जोह फरमाकर इन्दल्लाह माजूर व इन्दन्नास मशकूर होंगे। जामिया आप की दुआओं और तवज्जोहात का मुस्तहिक़ है। बारी इलाही हमें और आप को अपने मक़ासिदे हसना में कामियाब फरमाए और हर क़िस्म के शुरुर व फितन से हिफाज़त फरमाए और खि़दमते दीन के लिए कुबूल फरमाए और इख़लास व लिल्लाहियत फरमाए, आमीन।(जो कुछ तुम्हारे पास है वह ख़त्म होने वाला है जो अल्लाह के पास है वह बाक़ी रहने वाला है)
1. क़ौम के बच्चों व बच्चियों को बुनियादी तालीम के ज़रिए आरास्ता करना
2. कुरआने करीम को सहत के साथ पढ़ाने और उस के हिफज़ का शोक़ आम करना
3. मेयारी दीनी और असरी तालीम के मवाक़े फराहम करना और नादार तलबा के लिए क़याम व तआम के साथ मुफ्त तालम का इंतिज़ाम करना
4. ग़रीब मुस्लिम आबादी में शाख़ों की सूरत में मकातिबे इस्लामिया का क़याम
5. उलमा व हुफ्फाज़ की बाकिरदार जमाअत तय्यार करना
6. बच्चियों की मेयारी तालीम के लिए अलग से इक़ामती सहुलियात फराम करना
7. इलाक़े में दीनी शऊर की बेदारी और आम मुसलमानों में इस्लामी तशख़्ख़ुसात से क़दरदानी का जज़्बा पैदा करना
8. दीनी खुतूत पर नौनिहाल क़ौम की तरबियत करना और उन को अख़लाक़े हसना से मुज़य्यन करना
9. बीतिल अक़ायद और नज़रयात तरदीद और दावत व तबलीग़, मेहनतों और इल्मी व दीनी प्रोग्रामों के ज़रिए फितनों को ख़त्म करना।